Abour Kewal Kapoor
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केवल कपूर जीवन परिचय

केवल कपूर का जन्म 18 जून 1967 को मध्यप्रेदश के इंदौर शहर में हुआ, शुरुआती वक़्त में इंदौर से पढ़ाई करने के बाद ज़िंदगी में उतार-चढ़ाव के चलते केवल दिल्ली आ गए, और दिल्ली में ही उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की। केवल को शुरू से साहित्य की किताबों में काफी रुचि थी, और यही वजह थी कि वह सिलेबस से ज़ियादा सिलेबस के बाहर की किताबें पढ़ना पसंद करते थे। कॉलेज के दौरान केवल को अपनी कविताओं के लिए, डिबेट में हिस्सा लेने के लिए काफी पुरस्कार मिले। कॉलेज खत्म होने के बाद केवल ने लिखने के साथ-साथ शोध के क्षेत्र में भी अपना हाथ आज़माना शुरू किया। वक्त के साथ-साथ मेहनत रंग लाई, शोध के क्षेत्र में केवल ने काफी काम नाम कमाया, अलग-अलग क्षेत्र से लोग अलग-अलग मुद्दों पर शोध करवाने के लिए केवल कपूर के पास आने लगे। केवल का लिखा हुआ अब दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, राष्ट्रीय सहारा और भी कई बड़े बड़े अखबारों में छपने लगा, कविताओं से तो केवल का एक अटूट रिश्ता था ही, लेकिन बदलते वक़्त के साथ केवल ने देखा कि उन दिनों टेलीविज़न लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ था।

बदलते वक़्त के क़दम से क़दम मिला कर केवल कपूर अब, टीवी श्रृंखलाओं पर शोध के अलावा, कॉन्सेप्ट स्क्रिप्ट स्क्रीन पे कहानियाँ भी लिखने लगे। इतने सालों की मेहनत अब धीरे-धीरे रंग ला रही थी, जैसे-जैसे केवल का नाम बड़ा हो रहा था, वैसे-वैसे बड़े-बड़े टेलिविज़न प्रोडक्शन हाउस से नौकरी के प्रस्ताव आ रहे थे, केवल ने देश की कुछ सबसे बड़ी प्रोडक्शन संस्थाओं में ऊँचे पदों पर काम भी किया, कुछ कार्यक्रमों में एंकरिंग भी करी भारत में मौजूद एक विदेशी चैनल की आइडिएशन टीम का हिस्सा भी बने, और कुछ जगहों पर होस्ट भी रहे, साथ ही आगे चल कर केवल के द्वारा निर्णायक भूमिका शोध पटकथा में भी जिंस श्रृंखला को रापा अवॉर्ड भी मिला। केवल कपूर अब तक मीडिया के हर क्षेत्र में अपना हाथ आज़मा चुके थे, केवल को अब सिर्फ दो ही क्षेत्र दिख रहे थे, एडवर्टाइजमेंट और मोबाइल, केवल के पास इन दोनों क्षेत्रों का कोई तजुर्बा नहीं था, न कोई खास जान-पहचान, हां बस कुछ बड़े आइडियाज़ थे, मज़बूत इरादा था, और ढेर सारा हौसला।

केवल ने देश की चंद बड़ी कंपनियों में से एक बड़ी कंपनी के साथ पार्टनरशिप पर विज्ञापन की दुनिया में कदम रखा, एडवर्टाइजमेंट की दुनिया में कदम रखने के बाद केवल ने इंक्रेडिबल इंडिया और इंडियन आर्मी जैसे बड़े प्रोजेक्ट्स के कुछ हिस्सों को संभाला। 150 ईयर फ्रीडम स्ट्रगल कैंपेन को मिनिस्ट्री ऑफ़ टूरिस्म की तरफ़ से, उस साल का सबसे बेहतर कैंपेन होने का अवार्ड भी मिला। सन 2000 से लेकर 2010 तक केवल के द्वारा किए गए कई कामों को कई लोगों ने पुरस्कार दिया। रिचर्ड एटनबरो के बाद केवल कपूर वह पहले इंसान थे जिन्होंने 30 जनवरी को गांधी स्मृति के अंदर जाकर एक शार्ट फिल्म बनाई, इसी साल ट्विटर पर एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कराई गई, इसी साल केवल दुनिया के तीसरे सबसे बड़े खेल पोर्टल के साथ जुड़े, और एक निर्णायक की भूमिका अदा की। इसी बीच केवल कपूर की नज़र बढ़ती उम्र की समस्याओं पर गई, 3 सालों तक एजिंग के बारे में सिलसिलेवार तरीके से लगातार पढ़ने और रिसर्च करने के बाद, केवल ने आवाज़ उठाई और एक बदलाव की शुरुआत की।उस वक़्त केवल कपूर शायद इकलौते ऐसे शख़्स थे जो एजिंग पर आवाज़ उठा रहे थे, केवल का कहना था कि हमारे समाज में बुजुर्गों के लिए गिने-चुने एज केयर सेंटर्स है और जो ओल्ड एज होम्स है उनमें भी पूरी तरह से मेडिकल की सुविधाएं नहीं हैं। लगातार दो सालों तक भारत सरकार के मंत्रालय से बातचीत, मीटिंग और प्रेजेंटेशन करने के बाद, केवल, सेकंड लाइफ को नीतिगत स्तर पर लागू करवाने में कामयाब रहे।

भारत सरकार ने केवल के साथ डिजिटल के क्षेत्र में एक एक्स्क्लूसिव एमओयू पर हस्ताक्षर किये, यह इस क्षेत्र में भारत सरकार के साथ मिलकर किया गया सबसे बड़ा काम था। उसके बाद तो अगले 3 सालों के अंदर अंदर केवल कपूर एजिंग की दुनिया में एक जानी-मानी आवाज़ बन गए। 2019 में उन्होंने एक नई तैयारी की, 'रिटर्न ऑफ मिलियन स्माइल' यानी एजिंग एजेंडा को एक दूसरे स्तर पर ले जाने की तैयारी। २०२० आते आते इस मुहीम में वेलनेस भी जुड़ गया। केवल कपूर मानते हैं, समाज को बेहतर बनाने का एक ही रास्ता है, कि हम लोग अपनी सभ्यता अपनी संस्कृति की अहमियत समझें, और जब बात हिंदुस्तानी संस्कृति की हो, सभ्यता की हो, धर्म की हो, तो सबसे पहले हम लोगों के ज़हन में जो नाम आता है, वो है गोस्वामी तुलसीदास महाराज। क्योंकि अगर तुलसीदास जी न होते तो हम लोग श्री रामचरित्र मानस और हनुमान चालीसा जैसी नायाब रचनाओं से वंचित रह जाते। आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो तुलसीदास महाराज की ज़िंदगी के बारे में कुछ नहीं जानते, और इसी बात को ध्यान रखते हुए केवल कपूर ने सोशल मीडिया को सहारा बनाकर तुलसीदास जी की कहानी ज़ियादा से ज़ियादा लोगों तक पहुंचाने का बीड़ा उठाया, और तुलसीदास जी के जीवन परिचय की एक श्रंखला शुरू की, जिसका नाम रखा गया 'तुलसीदास जी की कथा'।