Kewal Kapoor - About Tulsidas

तुलसीदास जी का जीवन परिचय

तुलसीदास जी का जन्म आज से लगभग 490 बरस पहले 1532 ईसवी, उत्तर प्रदेश के गांव मे हुआ था। जब कोई बच्चा इस दुनिया में आता है तो उसकी आँखों में आँसू होते हैं, लेकिन जब तुलसीदास महाराज दुनिया में आए तो उनकी आँखों में आँसू नहीं बल्कि होठों पर भगवान श्री राम का नाम था। पैदा होते ही राम नाम जपने के वजह से तुलसीदास जी का नाम राम बोला पड़ गया। पैदाइश के कुछ वक़्त बाद ही शदीद बीमारी की वजह से रामबोला की वालिदा हुलसी देवी का देहांत हो गया, हुलसी देवी के देहांत के बाद रामबोला के पिता आत्माराम दुबे और बाकी गाँव वालों ने रामबोला को मनहूस करार देते हुए, गाँव से बाहर निकालने का फैसला कर लिया। इस मुश्किल घड़ी में आत्माराम दुबे के घर में काम करने वाली बाई मुनिया ने उस नन्हें बालक का हाथ थामा और वो उसे अपने साथ अपने घर ले आई।

5 वर्षों तक बाई मुनिया ने रामबोला को नाज़ों से पाल पोस कर बड़ा किया, लेकिन 5 वर्षों बाद दुर्भाग्यवश सांप के काटने की वजह से मुनिया का भी देहांत हो गया। मुनिया के देहांत के बाद रामबोला फिर से बे-घर हो गया, मुनिया के घर वालों ने भी मनहूसियत का ठप्पा लगाकर रामबोला को गांव से बाहर निकाल दिया। दर-दर की ठोकरें खाता हुआ वह 5 बरस का बालक इधर उधर भटक रहा था, तभी गुरु नरहरीदास जी ने उस नन्हे बालक का हाथ थामा और उसे अपने साथ अयोध्या ले आए, अयोध्या आने के बाद गुरु नरहरीदास जी ने रामबोला का नामकरण किया और उस दिन से लेकर आज तक उस 5 बरस के नन्हे रामबोला को हम लोग तुलसीदास महाराज के नाम से जानते हैं।

अयोध्या में अपनी शुरुआती दौर की शिक्षा पूरी करने के, बाद तुलसीदास जी वाराणसी चले आए, वाराणसी में उन्होंने लगभग 14 वर्षों तक वेद, वेदास और संस्कृत ग्रामर जैसे कठिन विषयों का अध्ययन करके उन पर महारत हासिल की। इतना ज्ञान प्राप्त करने के बाद तुलसीदास जी ने अपने गुरु की आज्ञा से जगह-जगह जाकर लोगों को प्रवचन देने शुरू किए और अपने ज्ञान की रौशनी से समाज में फैले हुए अंधविश्वास रूपी अँधेरे को दूर करने की कोशिश करने लगे। समाज को बेहतर बनाने की इस राह पर चलते चलते तुलसीदास जी विवाह की मंज़िल तक जा पहुंचे और बिवाह के बाद उनकी ज़िंदगी में एक ऐसा मोड़ आया कि उन्होंने सारे सामाजिक रिश्तो का त्याग कर दिया और पूरी तरह से राम भक्ति में डूब गए। तुलसीदास जी की भक्ति का प्रभाव इतना ज़ियादा था कि 1 दिन स्वयं प्रभु श्री राम ने उन्हें दर्शन दिया और उनके माथे पर चंदन तिलक लगाया। राम भक्ति की राह पर चलते-चलते तुलसीदास जी ने रामचरित्र मानस और हनुमान चालीसा जैसी ख़ूबसूरत रचनाओं को जन्म दिया और पूरी दुनिया के सामने रामभक्ति की एक नई परिभाषा लाकर रख दी।